आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले है Vatsalya Ras Ka Udaharan क्योकि हिंदी व्याकरण में रस का बहुत ही ज्यादा इस्तेमाल होता है। रस एक इम्पॉर्टन्ट इकाई है और रस को 9 भागों में बाटा गया है। अगर आपको भी नहीं पता Vatsalya Ras Ka Udaharan के बारे में तो आप बिलकुल भी चिंता ना करे क्योकि आज हम आपको Vatsalya Ras Ka Udaharan के बारे में बताने वाले है।
वात्सल्य रस की परिभाषा
कविता को सुनने पर जब प्रेम विशेषत अनुजों के प्रति, से भावों की फीलिंग होती है तो इस फीलिंग को वात्सल्य रस कहते हैं। दूसरे शब्दों में समझे तो वात्सल्य रस वह रस है, जिनमे अनुराग व स्नेह का भाव होता है।
वह प्रेम जो अनुजों के लिए आता है, उसी को वात्सल्य कहते हैं। जैसे की एक माँ का अपने बेटे या बेटी के प्रति प्रेम, एक शिक्षक का उसके शिष्यों के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों या अनुजों के लिए प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम व एक सखा का उसके सखा के प्रति प्रेम इत्यादि।
सामान्य रस परिचय
अगर आपको ‘वात्सल्य रस’ को समझने है तो आपको उससे पहले ‘रस’ को समझना चाहिए। जो कविता को पढ़ कर या सुन कर हमें जो आनंद आता है, उसे ही हम रस कहते हैं। वास्तव में आनंद के रूप में बहुत ज़्यदा भाव व्यक्त होते हैं।
अतः कई ज़्यदा भावों के आधार पर ही रस के 9 प्रकार होते हैं। ‘वात्सल्य रस’ इन्हीं 9 रसों में से एक है।
‘वात्सल्य रस’ परिचय
वात्सल्य रस का काव्य के सभी नौ रसों में बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वात्सल्य रस, श्रृंगार रस, रौद्र रस तथा वीर रस ही प्रमुख रस हैं तथा भयानक, वात्सल्य, भक्ति, हास्य, शांत, करुण रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है
वात्सल्य रस चरित्र की उस स्थिती को बताता है जब वह किसी और चरित्र के बारे में स्नेह या अनुराग प्रदर्शित करता है तो संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि कविता में जिस भाग में स्नेह को दिखाया जाता है, वहां वात्सल्य रस होता है।
‘वात्सल्य रस’ के अवयव
- स्थायी भाव: वत्सल।
- आलंबन (विभाव): कोई छोटा बच्चा, शिष्य या कोई भी अनुज।
- संचारी भाव: हर्ष, उत्साह, मोह, ममता, गर्व आदि।
- उद्दीपन: बाल लीला, तुतलाना, मासूमियत, बाल चेष्टा इत्यादि।
- अनुभाव: सिर पर हाथ फेरना, पीठ थपथपाना, हंस देना, गले से लगा लेना, आलिंगन, मुस्कराना, चूमना इत्यादि।
‘वात्सल्य रस’ के भेद
वात्सल्य रस, श्रृंगार रस का ही एक हिस्सा है। जहां श्रृंगार रस तरुण प्रेम को दिखता करता है, वहीँ वात्सल्य रस अनुज प्रेम को दिखता करता है।
श्रृंगार रस की तरह वात्सल्य रस के भी दो भेद हैं जोकि संयोग वात्सल्य और वियोग वात्सल्य है।
संयोग वात्सल्य
जैसा कि नाम से ही पता चलता है की संयोग का अर्थात संग में आना या योग होना है। इसका मतलब इस रस के दौरान दो चरित्रों की उपस्थिती में सामीप्य पाया जाता है। या फिर ये रस दो चरित्रों के साथ होने को बताता है।
उदाहरण:
पुनि पुनि नन्द बुलवाति, बाल दसा सुख निरखि जसोदा
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।।
वियोग वात्सल्य
वियोग रस, संयोग रस से उल्टा है। वियोग का मतलब होता है योग का उल्टा मतलब दूर जाना या बिछड़ना। अर्थात इस रस के दौरान दो चरित्रों के मन का बिछड़ना या दूर होना पाया जाता है
उदाहरण:
सन्देश देवकी सों कहिए,
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो।
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै।
वात्सल्य रस के उदाहरण
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ।।
मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छीको केहि विधि पायो।।
बर दंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमके घन-बीच जगै छवि, मोतिन माल अमोलन की।
घुंघराली लटें लटके मुख- अपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निबछावर प्रान करें ‘तुलसी’ बलि जाऊ लला इन बोलन की।
सदेसो देवकी सो कहियो।
हौं तो धाय तिहारे सुत की, कृपा करति ही रहियौ।
जदपि देव तुम जानति है हौ, तऊ मोहि कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैते, माखन रोटी भावै।।
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।।
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी।।
निष्कर्ष
आज हमने आपको इस आर्टिकल में बताया Vatsalya Ras Ka Udaharan, सामान्य रस परिचय, ‘वात्सल्य रस’ परिचय, ‘वात्सल्य रस’ के अवयव, ‘वात्सल्य रस’ के भेद और वात्सल्य रस के उदाहरण के बारे में, हमे उम्मीद है आपको आपकी जानकारी मिल गयी होगी।