जानिए Arya Samaj Ki Sthapna Kab Hui
आज हम आपको इस आर्टिकल में Arya Samaj Ki Sthapna Kab Hui बताने वाले है और Arya Samaj Ki Sthapna कैसे हुई और किसने की ये सब भी बताने वाले है अगर आपको भी जानना है की Arya Samaj Ki Sthapna Kab Hui तो आप हमारा ये आर्टिकल पढ़ सकते है।
Arya Samaj Ki Sthapna सर्वप्रथम कहाँ हुई थी?
आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आन्दोलन है, स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने साल 1875 ई में इसकी स्थापना की थी। मथुरा के स्वामी विरजानन्द जी की प्रेरणा से मैन बंबई में किया। यह आन्दोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू धर्म में सुधार के लिए प्रारम्भ किया गया था।
आर्य यमज के लोग शुद्ध वैदिक परंपरा का पालन करते थे। और मूर्तिपूजा, अवतार, बलिदान, झूठे कर्मकांड और अंधविश्वास को खारिज कर दिया। इसमें अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव का विरोध किया गया और महिलाओं को भी यज्ञोपवीत धारण करने और वेद पढ़ने का अधिकार दिया गया।
Arya Samaj Ki Sthapna
सिद्धांत | कृशवंतों विश्वमार्यम (विश्व को आर्य बनाते चलो) |
स्थापना | 10 अप्रैल 1875 ई |
संस्थापक | स्वामी दयानंद सरस्वती |
प्रकार | धार्मिक संगठन |
वैधानिक स्थिति | न्यास |
उद्देश्य | शैक्षिक,धार्मिक शिक्षा, अध्यात्म,समाज सुधार |
मुख्यालय | नई दिल्ली |
सेवित क्षेत्र | सम्पूर्ण संसार |
आधिकारिक भाषा | हिन्दी |
मुख्य अंग | परोपकारिणी सभा |
संबद्धता | भारतीय |
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ आर्य समाज का मूल ग्रंथ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य ‘कृष्णवंतो विश्वमार्यम’ है जिसका अर्थ है – “आओ विश्व को आर्य बनाएं”।
आर्य समाज आंदोलन का प्रसार प्राय: पाश्चात्य प्रभावों की प्रक्रिया के रूप में हुआ। यह आन्दोलन केवल रूप में है, यह पुनर्जीवन था तत्वों में नहीं।
यह याद रखना चाहिए कि न तो स्वामी दयानंद और न ही उनके गुरु स्वामी विरजानन्द भाषा शिक्षा से प्रभावित थे। वे दोनों शुद्ध परंपरा में विश्वास करते थे।
स्वामी विरजनन्द [1778 – 1868] स्वामी विरजनन्द संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। वे आर्य समाज की स्थापना के लिए वैदिक गुरु और स्वामी दयानन्द के गुरु थे। स्वामी विरजानन्द जी मथुरा (अंध गुरु) के नाम से भी प्रसिद्ध थे।
Arya Samaj Ki Sthapna Kisne Ki
स्थापना – 1875ई०
स्थान – बंबई
संस्थापक – स्वामी दयानंद सरस्वती
आर्य समाज के 10 नियम
- केवल वेदों में निहित है। इस कारण वेदों का अध्ययन परम आवश्यक है।
- वेद मंत्रों के आधार पर किया जाना चाहिए।
- मूर्ति पूजा का विरोध।
- अवतारवाद एवं धार्मिक यात्राओं यक विरोध।
- कर्म सिद्धांत एवं आवागमन का सिद्धांत का समर्थन।
- नीरकर ईश्वर की एकता में विश्वास।
- स्त्री शिक्षा में विश्वास।
- विशेष परिस्थितियों में विधवा विवाह की स्वीकृति।
- बाल विवाह एवं बहुविवाह का विरोध।
- हिन्दी, संस्कृत, भाषा का प्रचार।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जीवन परिचय
- स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 ई. को हुआ था। यह मेरे (मुंबई की मौरवी रियासत) के पास गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था।
- स्वामीजी के पिता एक चुंगी लेने वाले होने के साथ-साथ एक ब्राह्मण कुल के बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण बचपन में उनका नाम मूल शंकर रखा गया था। उनका शुरूआती जीवन बहुत आराम से बीता। दयानंद सरस्वती की माता वैष्णो थीं जबकि उनके पिता शैव मत को मानते थे। बाद में विद्वान बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्र तथा अन्य अनेक धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन में लग गए।
महाशिवरात्रि का ज्ञान (बोध)
- स्वामी दयानंद सरस्वती महादेव शिव भोले के बहुत बड़े भक्त थे। बालक के पिता मूल शंकर ने उसे महाशिवरात्रि का व्रत रखने को कहा। रात के समय शिव मंदिर में लड़के ने देखा कि शिवलिंग पर चूहे कहर बरपा रहे हैं।
- मूल शंकर ने कहा कि यह वह शंकर नहीं है जिसके बारे में यह कहानी कही गई थी। इसके बाद मूल शंकर मंदिर से घर चले गए और उनके मन में सच्चे शिव के बारे में जिज्ञासा जागी।
स्वामी दयानंद सरस्वती का ज्ञान की खोज
- शिवरात्रि के दिन स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन में एक नया मोड़ आया। उन्होंने घर छोड़ दिया और यात्रा करते हुए वे गुरु विरजानन्द के पास पहुँचे। गुरुवर ने उन्हें पाणिनि व्याकरण, पतंजलि योग सूत्र और वेद वेदांग का अध्ययन कराया।
- गुरु दक्षिणा में उन्होंने विद्या को सफल बनाने, दान-पुण्य करने, मत-मतान्तरों का अज्ञान दूर करने को कहा। वेदों के प्रकाश से अन्धकार के इस अज्ञान रूप को दूर करो वैज्ञानिक धर्म आलो सर्वर वैदिक धर्म का वितरण यही तुम्हारी गुरुदक्षिणा है उसने अंतिम पाठ दिया ईश्वर और विषयों की निंदा मनुष्य के कर्मों में होती है, विस्तृत ग्रन्थों में नहीं।
सरस्वती जी के समाज सुधार के कार्य
महर्षि दयानंद का समाज सुधार में व्यापक योगदान था। महर्षि दयानंद ने तत्कालीन समाज में सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों तथा अनेक रीति-रिवाजों और पाखंडों का विरोध किया। सत्यार्थ प्रकाश ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में समाज को अध्यात्म और आवश्यकता से परिचित कराया था।
सामाजिक कुरीतियाँ का विरोध | समाज सुधार के कार्य |
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जंनमा जातिवाद | गुण कर्म स्वभाव आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन |
छुआ-छूत | शुद्धि आंदोलन |
बाल-विवाह | दलीतोद्धार |
सती-प्रथा | विधवा विवाह |
मृतक-श्राद्ध | अन्तर्जातीय विवाह |
पशु-बलि | सर्व शिक्षा अभियान |
नर-बलि | नारी सशक्तिकरण |
पर्दा-प्रथा | नारी को शिक्षा का ढिकर |
देव दासी प्रथा | सबको वेद पढ़ने का अधिकार |
वेश्या वृति | गुरुकुल शिक्षा |
शवों को दफनाना या नदी में बहाना | प्रथम हिन्दू अनाथली की स्थापना |
मृत बच्चों को दफनाना | प्रथम गौशाला की स्थापना |
समुद्र यात्रा का निषेध खंडन | स्वदेशी आंदोलन |
निष्कर्ष
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